नमाज़ सिर्फ एक इबादत ही नहीं बल्कि इसका अपना एक वैज्ञानिक महत्व भी हैेै। वैज्ञानिकोें के मुताबिक जो लोग लगातार नमाज़ पढ़ते है उनमें डिपरेेेेशन और दूसरी तमाम किस्म की बीमारियां होने की संभावना खत्म हो जाती है। यह हमारे जिसम से एक्सट्रा एनर्जी औ कैलोरी को खत्म करती है जो आज हार्ट अटेक और शुगर की सबसे बड़ी वजह हैै। नमाज़ आज पूरी दुनिया की मेडिकल इंडस्ट्री में षोध का विशय बन चुकी है। यह न सिर्फ इंसान की मेटाबालिक हेल्थ को सुधारती है बल्कि इसके इतने फायदे है जिसे एक किताब बयान नहीं किया जा सकता है।अमेरिका के मशहूर डाॅ. हरबेद के मुताबिक नमाज़ न सिर्फ दिल केpumping system को मज़बूत करती है बल्कि इससे ब्लड प्रेशर और हार्ट अटेक के खतरे को भी कम करती है।बेशक नमाज़ के हर पोज़ीशन और हर तरीके में सेहत का राज़ छुपा हुआ हैै।
आज कल जीवन के अंदर बहुत अधिक संघर्ष हो चुका है। इतना ज्यादा संघर्ष हो चुका है कि रोटी रोटी के लिए बहुत अधिक मेहनत करनी होती है। ऐसी स्थिति मे मन मे उथल पुथल होना संभव है। यदि आप 5 वक्त की नमाज पढ़ते हैं तो इसका अर्थ है आप 5 वक्त अपने मन को केंद्रित करते हैं।और जब मन केंद्रित होता है तो आप दूसरी फालतू की चीजों को भूल जाते हैं जो आपको परेशान कर रही थी। नमाज से आपका मन एकदम से शांत हो जाता है। कारण यह है कि आपका दिमाग एकदम से फोक्स होता है। अपने मन की शांति के लिए नमाज पढ़ना बेहद ही जरूरी होता है।इस्लाम मे 5 बार नमाज पढ़ा जाता है जो आपके मन की शांति को बहुत ही बेहतर करता है।
योगा और नमाज़
इंसान का जिस्म खुदा की अमानत है, और उसको फिट रखना उसका कर्तव्य है। अंतर्राश्ट्रीय योग दिवस पर जहां पूरी दुनिया खुद को फिट रखने के लिए योग दिवस मना रही थी वहीं मुस्लिम देषों में भी इसका आयोजन हुआ था। लेकिन इस्लाम में 1400साल पहले इंसान को फिट रखने के लिए नमाज़ के रूप में इसका फार्मूला दिया गया था। कुछ लोग यह भी मानते है कि नमाज़ और योग एक दूसरे के पूरक भी हैै।अगर हम योग और नमाज़ को बारीकी से देखें तो हमें योग और नमाज़ में काफी समानताएं नज़र आती हैं। योग और नमाज़ दोनो के साइंसटिफिक फायदे हैं।इस बारे में मौलाना ज़ुबैर नदवी कहते हैं कि नमाज़ अल्लाह की इबादत है योग नहीं, लेकिन दोनों के फायदे हैैं। अगर हम नमाज़ के हर पोज़ीषन को ध्यान से देखेंगे तो हमें नमाज़ के बेहद फायदे नज़र आएंगे जैसे कि योग में है जब्कि योग दिन भर में एक बार होता है और नमाज़ दिन भर में पांच बार पढ़ी जाती है जो कि इंसान की सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं।
इन पांचों नमाजों में 48 रकाअत होती हैं. एक रकाअत में एक रुकु और दो सजदे होते हैं. इस तरह पांचों नमाजों में 96 सजदे और 48 रुकु हुए. रुकु यानी दोनों पैरों के घुटनों पर हथेली रखकर जमीन की तरफ आधा झुकना और सजदा यानी जमीन पर माथा लगाकर झुकना. रुकु और सजदा करने के लिए जो नियम है उसके मुताबिक, दोनों मुद्राओं में कम से कम 25-30 सेकंड लगते हैं. हर रकाअत में नमाज पढ़ने वाले शख्स को पहले सीधे खड़े होकर कुछ आयतें पढ़नी होती हैं. इसके बाद वो अपने दोनों घुटनों पर हाथ रखकर आधा झुकते हैं, फिर जमीन पर सजदा करते हैं और उसके बाद दोनों पैरों को समेटकर कमर सीधी करके बैठकर आयतें पढ़ते हैं.
नमाज के दौरान जो ये पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है उसे स्वास्थ्य लाभ से भी जोड़कर देखा जाता है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह के आसन और प्राणायाम योग में किए जाते हैं, वैसी ही मुद्राएं नमाज में होती हैं.
मुफ्ती शमून कासमी का कहना है कि योग एक बेहतरीन एक्सरसाइज है, ये धर्मनिरपेक्ष पद्धति है. योग हमारे बुजुर्गों, ऋषि मुनियों और सूफी संतों की विरासत है. जो योग करेगा वो निरोग रहेगा. मुफ्ती शमून का कहना है कि जो योग में आसन आते हैं, उसी तरह के एक्सरसाइज नमाज में भी होती है.
रुकु- नमाज में जब दोनों पैरों के घुटने पर हाथ रखकर आधा झुका जाता है तो इसे रुकु में जाना कहते हैं. कई तरह की एक्सरसाइज में इस पोस्चर का इस्तेमाल किया जाता है. इसे पश्चिमोत्तानासन के जैसी मुद्रा भी माना जाता है.
सजदा- मुफ्ती शमून ने बताया कि जिस तरह नमाज के दौरान सजदा किया जाता है, योग में भी इस तरह के आसन हैं. साष्टांग या मंडूकासन भी इसी पोस्चर जैसा है. इसमें शरीर के आठ अंगों को जमीन पर रखा जाता है. नमाज में भी इसी तरह शरीर के आठ अंगों को जमीन पर रखा जाता है.
आखिरी कायदा- नमाज में रुकु और सजदा करने के बाद दोनों पैरों को समेटकर जमीन पर सीधे बैठना होता है. इसे नमाज की भाषा में आखिरी कायदा भी कहते हैं. योग में इसी तरह के पोस्चर में जो आसन किया जाता है वो वज्रासन कहलाता है. मुफ्ती शमून का कहना है कि अगर भोजन करने के बाद भी इस पोजिशन में बैठें तो शरीर को फायदा पहुंचता है.
इसके अलावा नमाज पूरी होने पर बैठे-बैठे गर्दन को पहले दाईं ओर घुमाया जाता है और फिर बाईं ओर. इसे सलाम फेरना कहते हैं. योग में इस तरह की क्रिया ग्रीवा आसन में की जाती है. कहा जाता है कि इसका सर्वाइकल की दिक्कत दूर करने में काफी राहत मिलती है.