जबलपुर| अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की 1975 की फिल्म ‘शोले’ भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित फिल्मों में गिनी जाती है। इस 15 अगस्त को फिल्म को रिलीज हुए पूरे 50 साल हो गए हैं। आज भी इसके डायलॉग्स और किरदार दर्शकों की जुबां पर जिंदा हैं—
“कितने आदमी थे?”, “तेरा क्या होगा कालिया?”, “तुम्हारा नाम क्या है बसंती?”, “इतना सन्नाटा क्यों है भाई?”—ये संवाद फिल्म को कालजयी बनाते हैं।
बड़े स्तर पर बनी थी फिल्म………..
फिल्म अभिनेता अनिल धवन याद करते हैं कि शोले का प्रीमियर किसी भव्य आयोजन से कम नहीं था। वे कहते हैं—
“मैं अपनी पत्नी के साथ प्रीमियर में गया था। इंटरवल में ही दर्शक फिल्म की तारीफों के पुल बांधने लगे थे। हर थिएटर के बाहर इसकी चर्चा होती थी। यहां तक कि रामसे ब्रदर्स तक अपने दोस्तों को टिकट दिलाने के लिए परेशान रहते थे। शोले की सफलता ने मल्टीस्टार फिल्मों का चलन शुरू किया।”
अर्चना पूरण सिंह बनीं ‘बसंती’………..
अर्चना पूरण सिंह को जब स्विट्जरलैंड के इंटरलाकेन में बग्गी दिखी तो उन्हें शोले याद आ गई। उन्होंने पति परमीत सेठी के साथ बसंती वाले सीन को बिना किसी रिहर्सल के दोहराया। अर्चना कहती हैं—
“शोले जैसी फिल्में खून में बस जाती हैं। उसके डायलॉग आपकी नसों में दौड़ते हैं। यही वजह है कि 20 साल बाद भी मैंने उस सीन को एक टेक में कर लिया।”
शोले के डायलॉग्स पर थे ऑडियो कैसेट………
अभिनेता मनीष वाधवा बताते हैं—
“मैंने शोले पहली बार बचपन में देखी थी। गब्बर सिंह, वीरू का टंकी पर चढ़ना, बसंती का तांगा, ठाकुर के हाथ, जया जी का दीया और छोटे-छोटे किरदार—सब याद रह गए। यहां तक कि ‘इतना सन्नाटा क्यों है भाई’ जैसे डायलॉग आज भी लोग बोलते हैं। मेरे पास इसके डायलॉग्स के ऑडियो कैसेट हुआ करते थे और हम बड़े ध्यान से सुना करते थे।”
आज भी कल्ट फिल्म……….
मनीष वाधवा आगे कहते हैं—
“शुरू में यह फिल्म चली नहीं, लेकिन जब चली तो फिर उतरी ही नहीं। आमतौर पर कोई फिल्म एक-दो बार देखने के बाद मन नहीं करता, लेकिन शोले बार-बार देखने पर और मजा देती है। लोग फिल्म के साथ-साथ खुद भी डायलॉग दोहराने लगते हैं। यही इसकी ताकत है।”
भारतीय सिनेमा में शोले का योगदान…………..
शोले को आज भी भारतीय सिनेमा में मिसाल के तौर पर लिया जाता है। जैसे मुगल-ए-आजम और मदर इंडिया, वैसे ही शोले भी एक कालजयी फिल्म मानी जाती है। तकनीक सीमित होने के बावजूद ट्रेन का एक्शन सीन आज भी अद्वितीय है।
पचास साल बाद भी शोले सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा का इतिहास और संस्कृति बन चुकी है। इसके संवाद, किरदार और सीन आने वाली पीढ़ियों को भी उतने ही प्रिय रहेंगे, जितने 1975 में थे।