Jabalpur Holi: होली के रंगों और गुलाल से सराबोर रहा शहर

Jabalpur Holi, जबलपुर। बुराई पर अच्छाई का प्रतीक रंगों का अलमस्त त्यौहार होलिकोत्सव परम्परागत तरीके से मनाया गया। पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था होने के कारण इस बार होली में मारपीट, लड़ाई झगड़े की वारदातें गत वर्ष की तुलना में कम हुईं। लोग रंगों में सराबोर रहे, अपने-अपने में मस्त रहे। शराब पीकर हुड़दंग मचाने वालों पर पुलिस ने वो लगाम कसी कि हुड़दंग तो हुई लेकिन शालीन।

शहर के प्रमुख चौराहों पर पुलिस ने स्टापेज लगा रखे थे, जिससे शराबियों के वाहनों की रफ्तार और अलमस्ती दोनों नियंत्रित रही। होलिका दहन की रात्रि से ही पुलिस सख्त हो गई थी। रात 11 बजे सारी होलिका प्रतिमाओं का दहन हो चुका था। सुबह से ही रंग और अबीर उड़ने लगा। हुरियारे रंगों में डूबने लगे। सुबह से शाम तक शहर में रंग गुलाल होता रहा। कालोनियों में होली का माहौल ही कुछ अलग था। लोग टोलियां बनाकर एक-दूसरे को रंग गुलाल लगा रहे थे। जबकि हुड़दंगियों को अपना अंदाज ही अलग था। कोई काला, कोई पीला, कोई नीले रंग में लिपटा झूम रहा था। डीजे साउण्ड सिस्टम पर सख्ती से पाबंदी के बाद भी देर रात तक कहीं-कहीं नाच गाना होता रहा। जबकि दूसरे दिन लाउड स्पीकर पूरी तरह बंद रहे, लेकिन साउण्ड बॉक्स और ढोल ढमाकों के साथ खासकर नवयुवकों की टोलियां हुड़दंग मचाती रही। ये बात अच्छी रही कि लोग आपस में ही होली खेलते रहे। किसी अपरिचित व्यक्ति पर न रंग डाला, न गुलाल फेंकी। इसलिए भी लड़ाई झगड़े की वारदातें कम हुईं। पुरानी रंजिशों को लेकर भी कुछ छुटपुट वारदातें जरूर हुईं।

एक होली जो सुबह 5 बजे जली

शहर में तमाम जगहों पर होलिका प्रतिमायें रात 10  बजे से जलना शुरू हो गई थी और रात 1 बजे तक होलिका प्रतिमाओं का दहन हो गया था। लेकिन मिलौनीगंज चौराहे पर हिन्दू संगठनों द्वारा रखी गई होलिका प्रतिमा का दहन सुबह ५ बजे हो सका। यहां सत्ता दल के अनुषांगिक संगठनों के दवाब के चलते पुलिस का दवाब नहीं चल सका और चार थानों के टीआई, दो संभागों के सीएसपी और पुलिस बल मौजूद रहा। सुबह ५ बजे तक पुलिस अधिकारियों ने रतजगा किया जिससे सुबह की पेट्रोलिंग प्रभावित हुई।

रंगों की बौछार

होलिका दहन के पश्चात युवाओं ने रंग भी खूब ख्ला, लेकिन रंग बौछारों का यह सिलसिला काफी देर नहीं चला। मस्ती का यह दौर रात्रि के दूसरे पहर तक ही चला। रात दो बजे करीब मोहल्लों की सड़कें, गलियां सूनी पड़ गईं।

मस्तों की टोलियां निकलीं

बुधवार को सुबह से ही युवाओं की टोलियां नगाढ़ियों की थाप पर झूमती हुईं निकली और गुलाल उड़ते हुए अपने क्षेत्रों में भ्रमण कर बुजुर्गों का आशीर्वाद और युवाओं को परस्पर बधाईयां देने का यह क्रम दोपहर तक चलता रहा।

बच्चों की पिचकारियां

बच्चों की अठखेलियां निराला समा बांध रही थीं। पिचकारियों में भरे रंगों की बौछारें अधिकांशतः उन्हीं के बीच चली। यदाकदा उनकी पिचकारियों की दिशा भटकी जरूर, लेकिन उनकी मासूम बौछारों में लोग घुल मिल गये, हंसते हुये बच्चों को प्यार करते अपने रास्ते निकल गये।

गांवों का निरालापन

गांवों में होली की अलग ही मस्ती रही। देर रात तक फागों के स्वर गूंजते रहे। नगढ़ियों की दिलकश लहरियां युवाओं को थिरकने मजबूर करती रहीं। यहां का पर्वीय परिवेश स्नेह की फुहारों और गुलाल में रंगा नजर आया।

आत्मीयता की झलक

शहरों का माहौल रहा हो अथवा गांवों का, सभी जगह भाईचारे की बयार बही। ऐसी कोई घटना नहीं हुई, जिससे स्नेह का दामन बदरंग हो पाता। सिहोरा तहसील के खितौला थाना क्षेत्र में एक शराबी व्यक्ति द्वारा अपने बेटे की दोस्त की हत्या करने की घटना जरूर सनसनी खेज रही।

सांस्कृतिक आयोजनों की कमी खली

कभी होली में सांस्कृतिक आयोजनों की भरमार रहा करती थी। लेकिन इस वर्ष होली में सांस्कृतिक आयोजनों की कमी जमकर खली। ले-देकर गुंजन कला सदन द्वारा होलिका दहन की पूर्व संध्या पर रासरंग महोत्सव गोलबाजार प्रेक्षा गृह में आयोजित किया गया, जो होलिका दहन के दिन एकमात्र सांस्कृतिक और गढ़ा फाटक में कवि सम्मेलन, साहित्यक आयोजन रहा।

मंहगाई और परीक्षाओं का असर

होली के त्यौहार में इस बार बेतहाशा मंहगाई और परीक्षाओं का प्रभाव भी स्पष्ट दिखा। बेरोजगार नौजवान जरूर होली की हुड़दंग में शामिल रहे, जबकि समस्याओं से बेजार नागरिक किसी तरह त्यौहार मनाने की औपचारिकता पूरी करने में ही परेशान रहा। स्कूल स्तर से लेकर कॉलेज स्तर तक की परीक्षाओं का दौर चलने के कारण विद्यार्थी वर्ग उत्साह से रंगों का यह पर्व मनाने की बजाय अध्ययन-अध्यापन में जुटा रहा।

परम्परागत तरीके से मनाया गया भाईदूज का पर्व

धुरेड़ी के दूसरे दिन भाईदूज का पर्व परम्परागत उत्साह के साथ मनाया गया। बहनों ने भाईयों के माथे पर टीका लगाया और उनकी दीर्घायु होने की कामना की। सेंट्रल जेल में भी जरूर कोरोना का भय रहा भाईदूज के पर्व पर कैदी भाईयों को तिलक लगाने पहुंची बहनों के लिये खुले में अलग से व्यवस्था नहीं की गई थी। मुलाकातियों की तरह बहनों को कैदी भाईयों से मिलवाया गया।

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