Trending News: नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरु हो गई है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद और लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार सीएए लागू करने जा रही है। आपको बता दें कि इस विधेयक को दिसंबर 2019 में संसद द्वारा मंजूरी दे दी गई थी। इस विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने की वकालत की गई है। वहीं, मुसलमानों को इससे अलग रखा गया है। कानून पारित होने के तुरंत बाद देश भर में इसके खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। इस कानून के अधिनियमों को कभी भी अधिसूचित नहीं किया गया है। सरकार ने नियम बनाने के लिए बार-बार विस्तार की मांग की है।
केंद्र की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकसभा की तैयारी शुरू कर दी है। चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है। साथ ही सरकार के सूत्रों ने मंगलवार को यह भी बताया कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के नियम को लोकसभा चुनाव की घोषणा से बहुत पहले अधिसूचित किया जाएगा। सूत्रों ने बताया है कि नियम अब तैयार हैं। ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार है। सूत्रों ने यह भी बताया कि पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी और आवेदक अपने मोबाइल फोन से भी आवेदन कर सकते हैं।
सूत्रों ने कहा, हम आने वाले दिनों में सीएए के लिए नियम जारी करने जा रहे हैं। एक बार नियम जारी होने के बाद कानून लागू किया जा सकता है और पात्र लोगों को भारतीय नागरिकता दी जा सकती है। यह पूछे जाने पर कि क्या लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले नियमों को अधिसूचित किया जाएगा, सूत्रों ने कहा, सभी चीजें जगह पर हैं और हां उन्हें चुनाव से पहले लागू किए जाने की संभावना है। आवेदकों को वह वर्ष बताना होगा जब उन्होंने यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था। आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा।
पिछले हफ्ते पश्चिम बंगाल में भाजपा की सभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भाजपा सीएए के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, दीदी (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) अक्सर सीएए के बारे में हमारे शरणार्थी भाइयों को गुमराह करती हैं। मैं स्पष्ट कर दूं कि सीएए देश का कानून है और इसे कोई नहीं रोक सकता। सबको नागरिकता मिलने वाली है। यह हमारी पार्टी की प्रतिबद्धता है।मोदी सरकार द्वारा लाए गए सबसे ध्रुवीकरण वाले कानूनों में से एक के कार्यान्वयन में देरी के लिए सरकार द्वारा कई कारण जिम्मेदार ठहराए गए हैं। इसका एक प्रमुख कारण असम और त्रिपुरा समेत कई राज्यों में सीएए को लेकर हो रहा जोरदार विरोध है। असम में विरोध प्रदर्शन इस आशंका से भड़के थे कि यह कानून राज्य की जनसांख्यिकी को स्थायी रूप से बदल देगा। विरोध प्रदर्शन केवल उत्तर-पूर्व तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी फैल गया।
सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग सहित कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हैं। वहीं एक अधिकारी ने कहा, केंद्र ने नियम बनाने के लिए अब तक आठ तारीखों के विस्तार का लाभ उठाया है। पिछले दो वर्षों में नौ राज्यों के 30 से अधिक जिला मजिस्ट्रेटों और गृह सचिवों को नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने की शक्तियां दी गई हैं।