लोकदल में शामिल होने का फैसलाः तत्कालीन विधायक नत्थु सिंह ने लोहिया से पैरवी कर मुलायम की राजनीति में एंट्री तो करा दी। जसवंतनगर से वे विधायक बने। मुलायम लोकदल में शामिल हुये और यहां से सफलता की सफर शुरु हुआ.
चंद्रशेखर के साथ जाने का निर्णय: मुलायम ने केंद्र में वीपी सिंह की जगह चंद्रशेखर को समर्थन देना शुरू किया। चंद्रशेखर को कांग्रेस का समर्थन मिला। उन्हें पीएम बना दिया गया। मुलायम सिंह यादव सीएम बने रहे। लेकिन, केंद्र में चंद्रशेखर की सरकार गिरी तो मुलायम को भी पद से हटना पड़ा। उनके इस फैसले को सियासी मैदान में पटखनी के रूप में लिया जाता है।
कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेशः 1990 में मुलायम सरकार ने सख्त रुख अपनाया। कारसेवकों को किसी भी स्थिति में बाबरी मस्जिद परिसर तक न पहुंचने देने का आदेश था। सरकार के आदेश पर पहली बार 30 अक्टूबर 1990 को गोली चलाई गई। 5 कारसेवक मारे गए। विरोध में 2 नवंबर को हजारों कारसेवक बाबरी मस्जिद के बिल्कुल करीब पहुंच गए। हनुमान गढ़ी के पास तब पुलिस ने गोली चलाई। मुलायम के इस फैसले को उनके जीवन का सबसे विवादित फैसला माना जाता है।
सपा बनाने का फैसलाः मुलायम सिंह यादव ने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी के गठन किया। यूपी के समाजवादी विचारधारा के नेता साथ आए और एक नई राजनीति की शुरुआत यूपी में हुई।
बसपा से गठबंधनः यूपी में राम मंदिर आंदोलन का उभार था। ऐसे में मुलायम ने कांशीराम के साथ मिलकर भाजपा के खिलाफ बड़ा गठबंधन कर लिया। मुलायम के इस फैसले को यूपी की राजनीति के सबसे बड़े सफल प्रयोग के रूप में माना जाता है।
कांग्रेस का समर्थन: मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2008 में कांग्रेस का समर्थन कर गिरती हुई मनमोहन सरकार को बचा लिया. सपा नेता के इस फैसले को देशहित का माना गया। इसके बाद वामदलों का महत्व कम होता चला गया.
अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया: वर्ष 2012 में समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह यादव के चेहरे पर चुनाव लड़ा. लेकिन पूर्ण बहुमत की सरकार की कमान मुलायम ने अखिलेश यादव को सौंप दी गई। मुलायम के इस फैसले ने पार्टी और परिवार में दरार ला दिया। आज भी इसको लेकर तकरार जारी है।